विरोध प्रदर्शन शुरू
गुवाहाटी/इम्फालः नागरिकता संशोधन विधेयक संसद में लाने की केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की घोषणा के दो दिन बाद गुरुवार को मणिपुर, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन किए गए.
इम्फाल घाटी में बड़े पैमाने पर नागरिक संस्थाओं, विश्वविद्यालय और कॉलेज छात्रों ने कड़ी सुरक्षा के बीच विरोध प्रदर्शन किया लेकिन राज्य के किसी भी हिस्से से अप्रिय घटना की कोई खबर नहीं है.
ज्ञापन में कहा गया कि नागरिकता संशोधन विधेयक पूर्वोत्तर क्षेत्र की जनजातियों के सिर पर लटक रही खतरे की तलवार है.
शिलांग में आयोजित रैली में एनईएफआईपी ने आरोप लगाया कि नागरिकता संशोधन विधेयक क्षेत्र से मूल जनजातियों के खात्मे की कोशिश है. एनईएफआईपी ने दावा किया कि अगर केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक को लागू करेगी तो वह संयुक्त राष्ट्र संघ से हस्तक्षेप की मांग करेगा.
इस विधेयक के मौजूदा स्वरूप में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, जैनियों, सिखों, बौद्धों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, अरुणाचल प्रदेश में नॉर्थ ईस्ट फोरम फॉर इंडिजिनस पीपुल के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन हुआ. फोरम का कहना है कि चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने आश्वासन दिया था कि वह इस विधेयक का समर्थन नहीं करेंगे.
हालांकि, गृहमंत्री अमित शाह ने हाल ही में असम में कहा था कि नया नागरिकता विधेयक संसद के अगले सत्र में लाया जाएगा. जेसीपीआई ने पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों से एकजुट होकर इस विधेयक का विरोध करने का आह्वान किया.
जेसीपीआई ने कहा, 'मौजूदा समय में दीमापुर में तीन से चार लाख शरणार्थी रह रहे हैं, असम में 31 अगस्त को एनआरसी का अंतिम मसौदा जारी हुआ था. यह आगे और बढ़ने वाला है. नागरिकता संशोधन विधेयक लागू होने पर इन शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिल जाएगी और नगालैंड पहले जैसा नहीं रहेगा.'
इम्फाल में इस विधेयक के विरोध में हजारों की संख्या में महिलाएं और छात्र सड़कों पर उतरे. इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले मणिपुर पीपुल अगेंस्ट सिटिजनशिप अमेंडमेंट बिल (एमएएनपीएसी) का कहना है कि यह नागरिकता संशोधन विधेयक असम समझौता को अप्रभावी कर देगा.
एमएएनपीएसी के संयोजक दिलीप कुमार युमनामचा ने कहा, 'यह बिल बाहरी लोगों को प्राथमिकता दे रहा है और स्थानीय लोगों की अनदेखी कर रहा है. अगर जरूरत पड़ी तो हम संयुक्त राष्ट्र से इसमें हस्तक्षेप करने को कहेंगे.'
असम में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) ने कहा कि वह असम संधि के उल्लंघन को स्वीकार नहीं करेंगे. केंद्र सरकार का धर्म के आधार पर विदेशियों को नागरिकता देना असंवैधानिक है क्योंकि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.
आसू छह साल से विदेशी विरोधी अभियान चला रहा है, जो 1985 में हुई असम समझौते से जुड़ा हुआ है. हालांकि, असम में भाजपा का कहना है कि इस बिल से देश में नागरिकता चाहने वाले शरणार्थियों की संख्या पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी.
भाजपा के प्रवक्ता और असम माइनोरिटी डेवलपमेंट बोर्ड के चेयरमैन सैयद मुमिनुल ओवाल ने कहा कि विपक्ष अपने राजनीतिक हितों के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक को एक औजार की तरह इस्तेमाल कर रहा है लेकिन तथ्य यह है कि प्रस्ताविक नागरिकता संशोधन विधेयक में नागरिकता देने के लिए कट ऑफ तारीख 31 दिसंबर 2014 दी गई है.
मौजूदा प्रावधानों के तहत भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए 12 साल तक भारत में रहना अनिवार्य है लेकिन नागरिकता संशोधन विधेयक में यह अवधि घटकर छह साल हो सकती है और शरणार्थियों को नागरिकता देने से रोकने के लिए कट ऑफ तारीख बढ़ सकती है.
(द वायर से साभार)