कपूर आयोग रिपोर्ट-3: बिड़ला भवन में बम फेंकने वाले मदनलाल पाहवा ने भी बताया था सावरकर को मुख्य षड्यंत्रकारी
जनचौक संपादकीय टीम
(30 जनवरी, 1948 को हत्या के आखिरी हमले से ठीक पहले 20 जनवरी को भी गांधी को मारने की कोशिश हुई थी। जब मदनलाल पाहवा नाम के एक शख्स ने दिल्ली स्थित बिड़ला हाउस पर बम फेंका था। हत्यारों की इस टीम में अकेला वही शख्स पंजाबी था बाकी सभी महाराष्ट्रियन थे। घटना के बाद उसे पकड़ लिया गया था। और उसने भी अपने बयान में दो नाम लिए थे पहला अहमदनगर से जुड़ा करकरे और दूसरा सावरकर। पेश है जेएल कपूर आयोग रिपोर्ट का एक और अंश-संपादक)
26.25: दिल्ली में बम विस्फोट की घटना और मदनलाल की गिरफ्तारी के बाद गवाह नंबर-27 प्रोफेसर जेसी जैन जो मदन लाल में दिलचस्पी (गतिविधियों में) ले रहे थे और इस तरह से उसका विश्वास हासिल कर लिए थे, ने श्री बीजी खेर (बांबे प्रांत के तत्कालीन मुख्यमंत्री) और श्री मोरार जी देसाई (राज्य के तत्कालीन गृहमंत्री) को कुछ सूचनाएं दे दी थी। सूचना यह थी कि दिल्ली षड्यंत्र के उद्देश्य को पूरा करने के लिहाज से दिल्ली जाने से पहले मदन लाल ने उन्हें करकरे के साथ अपने रिश्तों और सावरकर के साथ अपनी बैठक के बारे में बताया था। और यह कि महात्मा गांधी की हत्या का एक षड्यंत्र था।
प्रोफेसर जैन अपनी सूचना को लेकर बेहद उलझन में थे। और उन्होंने इस बात का अपने मित्रों अंगद सिंह और प्रोफेसर याज्ञनिक के सामने जब खुलासा किया तो वो भी उलझन में पड़ गए लेकिन मामले पर गंभीर होने की जगह उन्होंने इस तरह से लिया जैसे मदनलाल डींग मार रहा हो। बावजूद इसके प्रोफेसर जैन ने श्री जयप्रकाश नारायण से मिलकर उन्हें यह सूचना देने की कोशिश की लेकिन ऐसा करने में वह नाकाम रहे क्योंकि जय प्रकाश नारायण उस समय बहुत व्यस्त थे। वह और उनके मित्र अंगद सिंह ने इस सूचना को श्री अशोक मेहता (समाजवादी नेता) और मोइनुद्दीन हैरिस को दिया। लेकिन उन लोगों को इस घटना की याद नहीं है।….
26.34: बिड़ला हाउस (दिल्ली स्थित मौजूदा गांधी स्मृति स्थल) में बम के फटने की घटना (यह घटना 20 जनवरी को हुई थी) के बाद मदन लाल (पाहवा) ने एक बयान दिया था जिसमें इस बात के बिल्कुल साफ संकेत थे कि महात्मा गांधी की हत्या का षड्यंत्र रचा जा रहा है। यह बिल्कुल साफ तौर पर महात्मा की हत्या का षड्यंत्र था। मदनलाल का बयान एक षड्यंत्र के होने की बात को दिखाता था जिसमें मराठा शामिल थे जैसा कि मदनलाल उन्हें बुलाता था, और यह पूरा षड्यंत्र महात्मा गांधी के जीवन के खिलाफ निर्देशित था। 20 जनवरी, 1948 को दिए गए अपने पहले बयान में मदनलाल द्वारा कम से कम दो नामों करकरे और सावरकर का जिक्र किया गया था। और हिंदू राष्ट्रीय दैनिक के मालिक के नाम का खुलासा उसके 24 जनवरी के बायन में हुआ था (एक्स.1)। अब यह दिल्ली पुलिस के ऊपर था कि वह खुफिया एजेंसियों के जरिये उस सूचना पर काम करती और महात्मा गांधी की सुरक्षा के लिहाज से उपाय करती जैसी कि उस समय की परिस्थितियों की जरूरत थी।
26.89: इस विषय पर बात करने से पहले कुछ तथ्यों पर गौर करना जरूरी है। दिल्ली में बम 20 जनवरी को एक पंजाबी मदनलाल द्वारा फेंका गया था जो मराठियों के षड्यंत्र में एक गैर मराठी था, शायद यह एक छल था। प्रोफेसर जैन द्वारा श्री मोरारजी देसाई को सूचना 21 जनवरी को दी गयी और फिर उसी समय नागरवाला (मामले को देखने वाले बांबे के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर) को दे दी गयी। और उसके बाद नागरवाला ने अपने खुफिया जासूसों और मुखबिरों को काम पर लगा दिया। उस समय नागरवाला से दो नामों का जिक्र किया गया था- अहमदनगर का करकरे और बांबे का वीडी सावरकर- और वह मदनलाल की गिरफ्तारी के बारे में जानते थे।
26.90: 22 जनवरी को दिल्ली पुलिस के दो अफसर श्री नागरवाला से मिले और उन्हें कुछ सूचनाएं दीं। श्री नागरवाला बताते हैं कि वे करकरे जिसे वे गिरफ्तार करना चाहते थे, के नाम के अलावा कुछ नहीं जानते थे। और बाकी जो सूचना दिल्ली पुलिस द्वारा मुहैया करायी गयी थी उसको लेकर भीषण विवाद रहा है।