सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे उत्तराखण्डियों के लिए आज शर्म का दिन
पुरुषोत्तम शर्मा
उत्तराखण्ड वासियों के लिए आज कभी न भरने वाले जख्म के फिर कुरेदे जाने का दिन है। 1994 के बाद अब तक इन पच्चीस वर्षों में मुजफ्फर नगर कांड के दोषियों को सजा नहीं मिली है। जबकि केंद्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड तीनों जगहों में आज भाजपा की सरकार है।
गढ़वाल से दिल्ली जा रहे उत्तराखंड आंदोलन में भाग ले रहे गढ़वालियों पर उत्तर प्रदेश के मुजफ्फर नगर में सत्ता के प्रत्यक्ष संरंक्षण में जुल्म की जो इंतहा हुई, उसे उत्तराखण्ड की आने वाली पीढ़ियों को हमेशा याद रखना चाहिए। हमारे देश में लोकप्रिय जन आंदोलनों को कुचलने के लिए सुरक्षा कर्मियों द्वारा महिलाओं से बलात्कार को दमन का एक हथियार बनाने की यह सत्ता द्वारा संगठित पहली शुरूआत थी।
गढ़वाल क्षेत्र के जिन आंदोलन कारियों को दमन का यह बर्बर रूप झेलना पड़ा था, उसी गढ़वाल में पैदा हुए दो लोग आज उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हैं। केंद्र की सत्ता के शीर्ष में एक केंद्रीय मंत्री और देश की सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत रखने वाले सबसे शीर्ष केन्द्रीय नौकरशाहों में सुमार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और थल सेनाध्यक्ष विपिन रावत भी उसी गढ़वाल के हैं।
पर उत्तराखंड के लोगों और हमारी मां-बहनों को न्याय दिलाने के लिए आज तक एक भी पहल इन सब की ओर से नहीं हुई है। मुख्य मंत्री त्रिवेन्द्र रावत हमेशा से साम्प्रदायिक सौहाद्र की मिशाल बने उत्तराखण्ड में साम्प्रदायिक विभाजन के बीज बोने के लिए एनआरसी लागू करने की मांग कर रहे हैं, पर उत्तराखण्ड वासियों को न्याय दिलाने के लिए एक शब्द भी नहीं बोल सकते।
केंद्र और राज्य की सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे इन उत्तराखण्ड वासियों और उनको अपना गौरव मानने वाले उत्तराखंडियों के लिए आज का दिन शर्म से डूबने का दिन होना चाहिए।