लेनिन से सीखने की जरूरत है अपूर्वानंद जी, उन्हें खारिज करने की नहीं
(रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी और ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के नेता)
भारतवर्ष में डॉक्टर अंबेडकर ने भी यह महसूस किया कि यहां जातियां ही हैं जो वर्ग का प्रतिनिधित्व करती हैं और बिना जाति विनाश के नागरिक समाज का निर्माण नहीं हो सकता. स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व के विचार को फलीभूत नहीं किया जा सकता। वर्ग विहीन समाज में ही जाति विनाश और जाति विहीन समाज से ही वर्ग विहीन समाज का निर्माण होता है। वर्ग और जाति के विरुद्ध संघर्ष एक संपूर्ण इकाई है उसे एक दूसरे के विरुद्ध नहीं खड़ा किया जा सकता है। बुद्ध ने भी ब्राह्मणवाद से, जातिवाद से मुक्ति के लिए ही इस लोक और व्यक्ति के ज्ञान पर जोर दिया और कहा कि अप्प दीपो भव:। यह महान दर्शन भी भारत में ब्राह्मणवाद से पराजित हुआ, लेकिन मानव जाति की सेवा में इसकी भूमिका समाप्त नहीं हुई है।
(मीडिया विजिल से साभार)