यह प्रवासी मजदूरों के लिए भूख और अपमान का पैकेज है मोदी जी

यह प्रवासी मजदूरों के लिए भूख और अपमान का पैकेज है मोदी जी।


पुरुषोत्तम शर्मा


कोरोना संकट को जीवन की सबसे बड़ी विपदा के रूप में झेल रहे देश के दसियों करोड़ प्रवासी मजदूरों के लिए मोदी सरकार के आर्थिक पैकेज में सिवाय भूख और अपमान के और कुछ भी नहीं है। विपत्ति के 52 दिन बाद जब केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन बेशर्मी के साथ उनके नाम पर आर्थिक पैकेज की घोषणा कर रही थी। उस समय भी देश की सड़कों, रेलवे लाइनों में लाखों प्रवासी मजदूर भूखे-प्यासे, दम तोड़ते, बिलखते पैदल अपने गांवों की ओर हजारों किलोमीटर की यात्रा कर रहे थे।


वित्त मंत्री कह रही थी कि उनकी सरकार ने प्रवासी मजदूरों के लिए शैल्टर और तीनों समय के भोजन की व्यवस्था की है। वित्त मन्त्री के इस निर्मम झूठ को सुनकर तो खुद झूठ भी शर्मा गया होगा।


उन्होंने कहा कि केंद्र ने राज्यों को प्रवासी मजदूरों को राहत देने के लिए आपदा राहत फंड से 11002 करोड़ रुपया अप्रैल में ही भेज दिया है। जबकि तमाम राज्य सरकारें केंद्र से कोई सहायता न मिलने, यहां तक कि केंद्र के पास जमा राज्यों के जीएसटी मद के धन को भी अब तक रोके रखने का आरोप लगाते रहे हैं।


वित्त मंत्री ने कहा कि 12 हजार स्वयं सहायता समूहों ने 3 लाख मास्क व 1 लाख लीटर सेनेटाइजर बनाया। स्वयं सहायता समूहों के इस कार्य का केंद्र के आर्थिक पैकेज से क्या लेना देना है? क्योंकि पैकेज में इन समूहों के लिए कोई धन आवंटित नहीं किया गया है।


72 सौ नए स्वयं सहायता समूह मार्च - अप्रैल में बनाने की घोषणा भी हुई, जो आम बैठकों को किये बिना नहीं बनाए जा सकते। जबकि तब ज्यादातर समय लॉक डाउन था। फिर इन स्वयं सहायता समूहों के बनने का भी कोरोना आर्थिक पैकेज से क्या वास्ता है?


वित्त मंत्री ने इस बीच गावों में मनरेगा में मिली मजदूरी को इसमें गिना कर एक और झूठ बोला। जिसे वित्त मंत्री गिना रही हैं यह आम बजट में पारित मनरेगा मद का पैसा है। मनरेगा के लिए इस आर्थिक पैकेज में कोई अतिरिक्त धन का आवंटन नहीं किया गया है।


एक देश एक राशन कार्ड की योजना का भी 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज से कोई लेना देना नहीं है। वैसे यह भी पुरानी योजना है जिसका एलान अगस्त 2019 में केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान पहले ही कर चुके थे।


भूखे, घोर अभाव में जी रहे और मकान मालिकों द्वारा सड़क पर फेंक दिए गए प्रवासी मजदूरों को प्रति माह 5 किलो राशन का आवंटन उनकी भूख का मजाक उड़ाने के अलावा कुछ नहीं है। जब कि लाखों मजदूरों को यह मिला ही नहीं। क्योंकि सरकारी गल्ले की दुकानों में राशन माह में एक बार ही आता है और वहां अतिरिक्त स्टॉक नहीं दिया जाता है। राशन आने के बाद मिली पर्चियों का राशन फिर एक माह बाद आता है।


इस पैकेज में एक ही अच्छी योजना थी जिसमें कार्यक्षेत्र के नजदीक किराए या कम कीमत के मकानों के निर्माण की योजना थी। पर इसके लिए कोई धन का आवंटन न कर मोदी सरकार ने इसे भी कोरी लफ्फाजी/जुमले में ही बदल दिया।