सरकार देश के साथ नहीं, कुर्सी मजबूती अभियान में जुटी है

सरकार देश के साथ नहीं, कुर्सी मजबूती अभियान में जुटी है


इंद्रेश मैखुरी


पूर्वी अरुणाचल संसदीय क्षेत्र के सांसद हैं उनका नाम है -तापिर गाओ. सांसद महोदय ने संसद में वक्तव्य दिया कि चीन अरुणाचल प्रदेश की 50-60 किलोमीटर जमीन कब्जा चुका है. पिछले साल नवंबर का यह भाषण है,जो उन्होंने लोकसभा में दिया.


ध्यान रहे-वे सत्ताधारी भाजपा के सांसद हैं. आपने किसी को इस भाषण पर चिंतित होते देखा ,नवंबर से अब तक? कोई टी.वी. डिबेट सुनी इस मसले पर ? कहीं,कोई प्रतिक्रिया नहीं,कोई स्वर नहीं.


कहने को देश में मजबूत सरकार है. प्रधानमंत्री देश विदेश भ्रमण और मन की बात में व्यस्त हैं,गृह मंत्री विधायकों की बोली लगाने और किसी भी सूरत में हर राज्य में अपनी पार्टी की सरकार बनाने में अत्याधिक मशगूल हैं. रक्षा मंत्री भी हैं, एक अदद, पर बाकी मंत्रियों की तरह वे भी ornamental यानि सजावटी है,जो कभी-कभी यहाँ-वहाँ चले जाते हैं और कभी ज्यादा हो गया तो "कड़ी निंदा " कर देते हैं.


नतीजा यह है कि देश की जमीन कब्जा करने की बात संसद में भी उठती है तो किसी के पास कान देने की फुर्सत नहीं होती. और हाँ,सीमाओं की रक्षा ताकत से कम और diplomacy यानि कूटनीति से अधिक होती है. कूटनीति का शऊर किसी के पास है,नहीं. कूटरचना चाहे जितनी मर्जी करवा लो !


लोग कह रहे हैं,यह देश के साथ खड़े होने का वक्त है. आखिर कौन सा वक्त होता है,जो देश के साथ खड़े होने का नहीं होता ? देश मतलब उसकी आवाम,जनता. हर किसी को हर वक्त उसके हक में खड़ा होना चाहिए.


लेकिन जिनके लिए सरकार और देश एक ही हैं,वे अपनी जानकारी और परिभाषा दुरुस्त करें. देश की सरकार होती है. सरकार का देश नहीं होता. हम देश के साथ खड़े हैं,इसी लिए सरकार से पूछते हैं कि बिना युद्ध के सैनिकों का खून क्यूँ बहता है?


प्रश्न यह भी है कि क्या सरकार देश के साथ खड़ी है ? देश के साथ खड़ी होती तो लोकसभा में अपनी पार्टी के सांसद द्वारा देश की जमीन पर दूसरे देश के कब्जे की बात उठाए जाने के बावजूद खामोश नहीं रहती. सरकार देश के साथ खड़ी होती तो सीमा पर भयानक तनाव के दौर में उसकी प्राथमिकता वर्चुअल रैली नहीं होती,विधायक तोड़ना नहीं होता.


सरकार देश के साथ नहीं कुर्सी मजबूती के अभियान में जुटी है.फलतः देश कीमत चुका रहा है,बिना युद्ध के अपने सैनिक गंवा रहा है. देश के साथ खड़े हों,सरकार को जवाबदेह बनाएँ,सरकार से सवाल करें कि आखिर बिना युद्ध के सैनिकों के जान की कुर्बानी कब तक ?