क्रांतिकारी कवि वरवर रावव, जिनकी कविता बन गई उन्हीं का जीवन
रामजी राय की वाल से
कवि वरवर रॉव को कैद से आज़ाद करो!
उनके लिए बेहतर इलाज का इंतज़ाम करो!!
जब प्रतिगामी युग धर्म घोंटता है वक़्त के उमड़ते बादलों का गला तब न ख़ून बहता है न आँसू ।
वज्र बन कर गिरती है बिजली उठता है वर्षा की बूंदों से तूफ़ान...
पोंछती है माँ धरती अपने आँसू जेल की सलाखों से बाहर आता है कवि का सन्देश गीत बनकर ।
जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हैं, वह कै़द कर लेता है कवि को ।
फाँसी पर चढ़ाता है फाँसी के तख़्ते के एक ओर होती है सरकार दूसरी ओर अमरता।
कवि जीता है अपने गीतों में और गीत जीता है जनता के हृदयों में ।
बरबर रॉव , रचनाकाल : 23 अक्तूबर 1985