"पलटा" सामूहिक श्रम का हिस्सा है जबकि "हुड़किया बौल" श्रम के शोषण का
पुरुषोत्तम शर्मा
"बौल" सामूहिक श्रम या श्रम नहीं है
इन गीतों का कृषि व पशुपालन पर आधारित अर्थव्यवस्था से सम्बंध
इन गीतों का सिर्फ "हुड़किया बौल या गुड़ौल" से ही सम्बन्ध नहीं
कुस्यारु क ड्वक जसि, सुरज कि जोति.
छोलियाँ हल्द जसि, पालङा कि काति
सितो भरि भात खायोत उखालि मरन्यां
चूल भरि पॉणि खायोत नङछोलि मरन्या
हुड़किया बौल और पलटा प्रथा एक नहीं
"काम के बदले अनाज" मजदूरी नहीं बल्कि 'कुली उतार प्रथा' थी
तब ज्यातातर कृषि भूमि पर राजाओं, मालगुजार, थोबदार, पधानों का स्वामित्व था