कृषि बीमा में किसानों की लूट रोको, बिजली सुधार कानून वापस लो!

कृषि बीमा में किसानों की लूट रोको, बिजली सुधार कानून वापस लो!


एआइकेएससीसी


*9 अगस्त को कॉर्पोरेट भगाओ ,किसानी बचाओ आंदोलन की देश भर में हो रही है जोरदार तैयारी*


*असम की बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की*, *अखिल गोगई की रिहाई की मांग*,*अनावारी नापने की इकाई किसान का खेत बनाने की मांग*,*फसल बीमा किसानों के लिए 


छलावा साबित हुआ है*


अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के फेस बुक पेज पर  ऑनलाइन लाइव कार्यक्रम में पांचवें दिन "किसान को हुए नुकसान की भरपाई करो, फसल बीमा का मुआवजा दो" विषय पर चर्चा हुई . असम से अखिल भारतीय किसान महासभा के संयोजक बलिंद्र सेकिया ने बताया कि ब्रह्मपुत्र नदी की बाढ़ से हर वर्ष हजारों गांव पानी में डुब जाते हैं, लाखों किसान प्रभावित होते हैं.इस वर्ष 2,323 गांव पानी में डुब गए. एक लाख हेक्टेयर की खेती नष्ट हो गई है. 397 राहत शिविर चल रहे हैं. पिछले 15 वर्षों में 206 गांव नदी में समा गए है. उन्होंने कहा कि बाढ़ केवल प्राकृतिक आपदा ही नहीं मानव निर्मित आपदा है . उन्होंने कहा कि राज्य सरकार बाढ़ में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार करती है. उन्होंने असम की बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की.


बिहार से संयुक्त किसान संघर्ष मोर्चा के संयोजक  प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि फसल बीमा योजना  नाटक बन कर रह गयी है.राज्य सरकार  की  सहायता योजना में तो खेत की जुताई का खर्च भी नहीं निकलता. उन्होंने कहा कि गन्ना मिल मालिकों को सरकार कई सुविधा देती है पर गन्ना किसानों को कोई लाभ नहीं देती. सब्जी, फल  की खेती ओलावृष्टि से नष्ट होने पर भी कोई बीमा राशि किसानों को नही मिलती है.  उन्होंने कहा की गन्ना के रेट में दो वर्षों से कोई वृद्धि नही की गई है. किसान सम्मान निधि तो मात्र ऊंट के मुंह में जीरा जैसी है उसे बढ़ाकर 24,000 रू सालाना किया जाना चाहिए तथा हर गांव में गोडाउन  बनाया जाना चाहिए, केसीसी ब्याज मुक्त होना चाहिए. किसानों को खाद ,बीज तथा कीटनाशक पर 50% सब्सिडी दी जानी चाहिए.


उत्तर प्रदेश से जनांदोलन का राष्ट्रीय समन्वय की संयोजक  रिचा सिंह ने कहा कि हमारे प्रदेश में 50% फसल क्षतिग्रस्त होने पर ही फसल बीमा मिलता है उन्होंने बताया कि 2017 से लेकर अब तक कोई मुआवजा नहीं दिया दिया गया है .  टिड्डी दल द्वारा  फसल नष्ट कर दिए जाने के वावजूद अभी तक  पीड़ित किसानों की  कोई सुनवाई  नहीं हुई. कई सालों से 2300 रू बीघा की दर से मुआवजा मिल रहा है उसमें महंगाई बढ़ने के बावजूद कोई परिवर्तन नहीं किया गया. उत्तरप्रदेश में जंगली जानवर और आवारा जानवर फसल को क्षति पहुंचाते है ,उनकी रोकथाम की जानी चाहिए और मुआबजा भी दिया जाना चाहिए.


पश्चिम बंगाल से सचिव किसान महासभा के  जयतू देशमुख ने कहा कि फसल बीमा किसानों के लिए छलावा है किसानों से प्रीमियम के नाम पर लूट की जाती है . बटाई खेती करने वाले किसानों के लिए फसल बीमा योजना में कोई प्रावधान नहीं है, उन्हें इसका कोई लाभ नही मिलता.  उन्होंने कहा है कि बंगाल में अम्फान  तूफान आया, किसानों का सब कुछ नष्ट हो गया लेकिन राज्य और केंद्र सरकार से किसानों को कोई मदद नहीं मिली. उन्होंने माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं से कर्ज़ा लेने वालों की खस्ता हालत का ब्यौरा देते हुए 13 अगस्त को देशभर में होने वाले ऋण मुक्ति आंदोलन की जानकारी दी.


उत्तर प्रदेश से ऑल इंडिया किसान महासभा के अध्य्क्ष  जयप्रकाश राय ने कहा कि पहले किसान को खेती, पशुपालन और पेड़ पौधों से  आमदनी होती थी लेकिन पिछले साल ओलावृष्टि से पेड़ों से फल झड़ गए फसलें खराब हो गई लॉकडाउन के कारण दूध का रेट गिरने से लोगों ने अपने जानवरों को आवारा छोड़ दिया. उत्तर प्रदेश सरकार ने  एमएसपी को मजाक बना दिया है  लॉकडाउन के दौरान  सब्जी किसानों को  पुलिस द्वारा डरा धमकाकर बाजारों से भगा दिया जाता था, जिससे किसानों को भारी  नुकसान हुआ है. उन्होंने कहा कि इन सभी मुद्दों को लेकर 9 अगस्त को प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपा जाएगा.


वर्किंग ग्रुप के सदस्य एवम कार्यक्रम का संचालन कर रहे डॉ सुनीलम ने कहा कि किसान संगठनों को वर्किंग ग्रुप के सदस्य अखिल गोगई  को लगातार फर्जी मुकदमे बनाकर जेल में रखने और प्रशांत भूषण जैसे किसानों के हितैषी वकील को फर्जी अवमानना का प्रकरण बनाकर जेल भेजने के षड्यंत्र को गम्भीरता से लेना चाहिए तथा रिहाई की मांग के साथ  बयान जारी कर वीडियो बनाकर एकजुटता प्रदर्शित करना चाहिए. क्योंकि लोकतंत्र ही नहीं बचा तो किसान संगठन कैसे बचेंगे. उन्होंने कृषक मुक्ति संग्राम समिति के 3 कार्यकताओं की दीया लगाने पर गिरफ्तारी से पता चलता है कि देश मे लोकतंत्र खतरे में है. सूखे ,बाढ़ ,ओलावृष्टि ,अतिवृष्टि का  राजस्व मुआबजा देने , फसल बीमा मुआबजा देने में पहले  तहसील इकाई थी . मुलतापी के 24 किसानो की शहादत के बाद  यह मुद्दा राष्ट्रीय स्तर पर आया तब अनवारी नापने की इकाई पटवारी हल्का बनी जबकि यह किसान का खेत होना चाहिए, जो  किसान संघर्ष समिति की मुख्य मांग थी. उन्होंने सभी किसान संगठनों से अनुरोध किया कि वे अपने संगठन की ओर से प्रधानमंत्री को 9 मुद्दों पर समन्वय समिति द्वारा तैयार किया गया हस्ताक्षर युक्त  ज्ञापन पत्र ईमेल से स्कैन से अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति को भेजें 


*अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के फेसबुक लाइव कार्यक्रम का पांचवा दिन* *केंद्र सरकार से की बिजली संशोधन बिल 2020 वापस लेने की मांग*,*वक्ताओं ने बताया बिजली को मौलिक अधिकार*,*निजीकरण का किया विरोध*. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के पांचवे  दिन के ऑनलाइन फेसबुक कार्यक्रम बिजली संशोधन बिल2020 वापस  लो " विषय पर आयोजित किया गया.


सेंटर फॉर अकॉउंटीबॉलिटी के राजेश कुमार ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार विद्युत अधिनियम, 2003 को व्यापक ढंग से संशोधित करने के लिये उत्सुक है, जिससे निजी क्षेत्र को सिर्फ मुनाफे से मतलब रहेगा पर उसका कोई दायित्व नहीं होगा और अपने सारे जोखिम और नुकसान को वो जनता पर लाद देगा. आपत्ति दर्ज करने के लिए  21 दिन ही  दिये गये, खासकर तब  जब लोगों के अभिव्यक्ति के अधिकार  को निलंबित कर दिया गया है . विद्युत (संशोधन) विधेयक 2020 उन सुधारों को फिर से लाना चाहता है, जो सरकार 2014 और 2018 में विभिन्न हिस्सों से विरोध के चलते पारित कराने में असक्षम रही. इस नये विधेयक को 17 अप्रैल, 2020 को प्रस्तावित किया गया. 2003 मे बिजली उत्पादन का निजीकरण किया था जिससे बिजली क्षेत्र मे निजी कम्पनियो कि बाढ सी गई जिसका परिणाम बिजली क्षेत्र मे वित्तीय सकट और गैरनिस्पादित सम्पति के रूप मे हमारे सामने है. दुसरा केन्द्रीयकरण जिसमे बिजली क्षेत्र मे राज्य के सभी अधिकार को समाप्त कर केद्र आधारित बनाया. राज्य के हर पहलू पर केद्र का बेदखली होगी. तीसरा किसानो और आम लोगो को मिलने वाली बिजली बिल मे छूट को पूरी तरह से समाप्त कर दिया जायेगा. जिससे एक बडे वर्ग को बिजली से वचिंत होना पडेगा. यह बिल आंख बंद कर केवल निजी कम्पनियो के फायदे के लिये लाया गया है. यह बिल बिजली पहुच मे असमानता की खाई को और गहरा करेगा जिसका असर मूलतः किसानो पर होगा.


बादल सरोज संयुक्त सचिव अखिल भारतीय किसान सभा ने कहा कि सरकार  कल्याणकारी राज्य की समझदारी को उलट देना चाहती है . अब खेती किसानी  बर्बादी का बिजली क़ानून 2003  की धारा 62 और 65 में संशोधन कर दिया गया है.  जिसका सीधा मतलब यह है कि अब नियामक आयोगों द्वारा खेती के लिए बिजली की दरें बाकी बिजली दरों की तुलना में कम करके तय नहीं की जा सकेगीं.  जो भी छूट दी जाएगी वह कंपनी को दी जाएगी - वह किसान को दे या न दे यह उसकी मर्जी.  हो सकता है इसे अगली कुछ वर्षों के लिए डायरेक्ट कॅश ट्रांसफर का मुलम्मा चढ़कर दिखाया जाए, किन्तु अंतिम निष्कर्ष में यह बाकी सब्सिडियों को छीन लेने के बाद बिजली की सब्सिडी छीन लेना है.  बाद में एनडीए की अटल सरकार ने बिजली कानून में संशोधन कर बिजली कानून 2003 पारित किया . जिसमें बिजली में 100% निजी कंपनियों को छूट दी गई. बिजली बिना मुनाफा के मिलेगी, इसके बजाय बाजार रेट पर उपलब्ध कराने के प्रावधान जोड़े गए. यहां तक कि बिजली वायदा कारोबार में भी बिक रही है. इस सबके चलते बिजली के निजीकरण का मार्ग प्रशस्त हुआ. नियामक आयोग गठन किए गए. कंपनियां बनाई गई. कुल मिलाकर बिजली को निजी हाथों में सौंप दिया गया. 


बरगी विस्थापित संघ की ओर से बोलते हुए  जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय के संयोजक राजकुमार सिंहा ने कहा कि बिजली का क्षेत्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है.एक ओर इससे करोड़ों लोगों को रोशनी मिलती है दूसरी ओर खेती, धंधे, उद्योग आदि काफी हद तक बिजली पर निर्भर है. विश्व बैंक, आईएमएफ, एशियाई विकास बैंक तथा अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दबाव में तथाकथित  "उर्जा सुधारों"के नाम पर केंद्र सरकार द्वारा विधुत अधिनियम 2003 लाया गया. जिसमें विधुत नियामक आयोग के गठन के अलावा तीन प्रमुख उद्देश्य थे.जिसमें (1) विधुत मंडलों का विखंडन कर उत्पादन, पारेषण एवं वितरण कंपनियों का निजीकरण, (2)विधुत दरों में लगातार वृद्धि और(3)निजी और विदेशी निवेश को प्रोत्साहन. यह कैसा सुधार है कि सन् 2000 में मध्यप्रदेश विधुत मंडल का घाटा 2100 करोड़ रूपये था और 4892 करोड़ रूपये दीर्घकालीन ॠण था,जो पिछले 15 सालों में बिजली कंपनियों का घाटा और कर्ज 52 हजार 60 करोड़ रुपए तक बढ गया है और कर्ज 39 हजार 85 करोड़ हो गया है. 2014 से 2018 तक पिछले चार वित्तीय वर्षा में 24 हजार 888 करोड़ रुपए का घाटा हो चुका है.निजीकंपनियों से विधुत खरीदी अनुबंध के कारण 2010 से 2019 अर्थात पिछले नौ सालों में बिना बिजली खरीदे 6500 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है.मध्यप्रदेश में उर्जा सुधार के 18 साल बाद भी 65 लाख ग्रामीण उपभोक्ताओं में से 6 लाख परिवारों के पास बिजली नहीं है और सभी गांव में बिजली पहुंचाने के सरकारी दावों के विपरीत मध्यप्रदेश के 54903 गांवों में से अभी भी 3286 गांवों में बिजली नहीं पहुंचा है.


किसान संघर्ष समिति की उपाध्यक्ष अधिवक्ता आराधना भार्गव ने कहा कि छिंदवाड़ा मे अडानी ने किसानों से 2010 में जमीन ली थी. नया भू अर्जन कानून जो कांग्रेस की सरकार के समय लागू हुआ था. जिसमें  अवार्ड पारित होने के पांच साल के अंदर कोई परियोजना पूरी नहीं होती है तो  कानून के मुताबिक  जमीन किसानो को वापस की जानी चाहिए. उन्होंने अंबानी पावर प्लांट निरस्त करने ,नये भू -अर्जन अधिनियम की धारा 24(2) के अनुसार किसानों की जमीन किसानों को वापस करने की मांग करते हुए कहा कि अगर बिजली बनानी हो तो माचागोरा बांध पर सोलर प्लांट बनाकर बिजली पैदा की जानी चाहिए . उन्होंने बताया कि उक्त मांगों को लेकर 9 अगस्त को प्रदर्शन किया जाएगा.


पंजाब से कीर्ति किसान यूनियन के उपाध्यक्ष राजिंदर सिंह ने कहा कि विद्युत संशोधन विधेयक ,2020 किसान और उपभोक्ता विरोधी है.इस बिल का मकसद बिल की सब्सिडी समाप्त कर गरीबों से बिजली छीनना है. इसके साथ साथ वह राज्य के विद्युत नियामक आयोगों के अधिकारों को केंद्रीय अथॉरिटी बनाकर उंसको सौंपने वाली है. उन्होंने कहा कि कीर्ति किसान यूनियन चाहती है कि देश की सभी प्रगतिशील तथा लोकतांत्रिक ताकते एकजुट होकर नई परिस्तिथिति का मुकाबला करें.


समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य  प्रेम सिंह गहलावत ने कहा कि  उनका संगठन हरियाणा में 9 अगस्त क्रांति दिवस के दिन' कार्पोरेट भगाओ,किसानी बचाओ' आंदोलन  की जबरजस्त तैयारी कर रहा है. हम सरकार की चुनौती को स्वीकार करने को तैयार हैं.


राजस्थान से अखिल भारतीय किसान महासभा  के रामचंद्र कुलहरी ने कहा कि बिजली संशोधन कानून 2020 से बिजली पर कंपनी का एकाधिकार हो जाएगा, कंपनी की मर्जी चलेंगी. एक जुनियर इंजीनियर यदि किसान पर फर्जी प्रकरण दर्ज कर दे तो किसान को अपनी इमानदारी साबित करने के लिए कई साल कचहरी के चक्कर लगाना पड़ता है.