आज 30 जून,2021ई को 166 वें संताल हूल दिवस अर्थात संताल विद्रोह दिवस के अवसर पर सभी मूलनिवासी समाज के अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्गों सहित अन्य सभी नागरिकों को क्रांतिकारी बधाई और शुभकामनाएं।
30 जून,1855 ई को पूर्णिमा के दिन चार भाईयों -सिद्धो,कान्हू, चांद, भैरव और उनकी दो बहनों-फुलो एवं झानो के नेतृत्व में लगभग 30000 संताल जनजाति के स्त्री-पुरुषों ने अंग्रेजी शासन, जमींदारों और महाजनों के शोषण-उत्पीड़न के खिलाफ हूल का बिगुल फूंक दिया था। यह संताल विद्रोह एशिया महादेश का सबसे बड़ा जन-विद्रोह और भारत की पहली जन क्रांति थी।इस जन क्रांति में शहीद हुए सिद्धो-कान्हू एवं उनके भाईयों और बहनों सहित सभी हजारों शहीदों को मूलनिवासी बहुजन समाज की ओर से हार्दिक श्रद्धांजलि और शत शत नमन।
इस विद्रोह के लगभग 12 वर्षों के बाद अंग्रेज लेखक ई.जी.मान (1867)तथा डब्लयू.डब्लयू.हन्टर ( 1868-72)और एफ.बी. बेडेल-बर्ट(1905), मैकफर्सन (1909),ओ मैली(1910) आदि लेखकों ने इस पर विस्तार से जानकारी दी हैं और इसके कारणों पर प्रकाश डाला है।उन लेखकों ने संताल हूल के निम्नांकित कारणों का उल्लेख किया है---
1.जनजातियों पर जमींदारों और महाजनों के अन्याय, अत्याचार,सूदखोरी और आर्थिक शोषण।
2.संताल महिलाओं का अपहरण करना और उनके साथ बलात्कार करना।
3.पुलिस और न्यायालय के अधिकारियों के द्वारा संतालों पर अत्याचार और दमन किया जाना।
4.संतालों की जमीन और खेतों पर प्रशासन तथा महाजनों द्वारा जबरन कब्जा करना।
5.रेल अधिकारियों और ठेकेदारों के द्वारा संतालों पर अत्याचार।
6.संताल जनजाति की सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर दिकुओं यानी गैर आदिवासियों द्वारा हो रहे लगातार हमले, आदि, आदि।
इस जन क्रांति में 30जून,1855ई को लगभग चार सौ गांवों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग तीस हजार संताल स्त्री -पुरुष भोगनाडीह बरहेट (तत्कालीन जिला- भागलपुर) जिला- साहिबगंज, दुमका में एकत्र हुए थे और सिद्धो को अपना नेता (ठाकुर) तथा उनके छोटे भाइयों के साथ- साथ अन्य कई लोगों को उनका सहयोगी चुना था।इसी सभा में लाठी,तीर-धनुष,कुठार, तलवार और बर्छी आदि धारण किए हुए सभी लोगों के साथ राजधानी कलकत्ता की ओर कूच करने का निर्णय लिया गया था। कलकत्ता जाकर वे अपने जंगल, जमीन,इज्जत औरअधिकारों की रक्षा के लिए गवर्नर जनरल के पास अपनी बातों को रखना चाहते थे। उस समय उन्होंने यह नारा दिया था -"जुमीदार,महाजोन, पुलिस और राजरेन अमलाको गुजुकमा"अर्थात जमींदार, महाजन, पुलिस और राजा का नाश हो।इस विद्रोह की लहर शीघ्र ही जंगल की आग की तरह बंगाल, बिहार-झारखंड के बड़े क्षेत्र में फैल गई।पर अंग्रेजों और जमींदारों ने सत्ता, चालबाजी, शस्त्र शक्ति और सैनिकों के बल पर इस जन क्रांति को कुचल दिया। इसमें हजारों संताल, अन्य किसानों एवं गरीब मुस्लिम किसानों को मार दिया गया और क्रांति के अधिकांश नायकों को पकड़ लिया गया तथा उन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया।
अंततः इस मूलनिवासी हूल ने भारत के अंग्रेज शासक को अधिनियम-37,1855 ई को पास करने के लिए बाध्य कर दिया ,जिसमें जंगल और जमीन पर संताल सहित सभी मूलनिवासियों का ही अधिकार घोषित किया गया और भागलपुर एवं वीरभूम जिले से निकाल कर संताल परगना जिला बनाया गया। इसका जिला मुख्यालय पहले देवघर में बनाया गया और बाद में बदल कर दुमका कर दिया गया।
स्वतंत्रता के बाद से आज तक पूरे भारत में मूलनिवासी जनजातियों के जंगल, जमीन , भाषा, संस्कृति और संवैधानिक अधिकारों पर भूमाफियाओं, पूंजीपतियों और सामंती विचारों एवं ब्राह्मणवादियों के हमले लगातार हो रहे हैं।आर एस एस और भाजपा की सरकार जब से केन्द्र और राज्यों में आई हैं तब से आदिवासी क्षेत्रों में हमले और भी तेज हो चुके हैं।इन विषम परिस्थितियों में संताल हूल से सबक लेकर हमारे जनजाति भाई-बहनों के द्वारा अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जगह -जगह संघर्ष किए जा रहे हैं।
अतः हम सभी मूलनिवासी बहुजन समाज के लोगों को अपनी आजादी और विकास के लिए एकजुट होकर लड़ाई लड़ने की आवश्यकता आ पड़ी है। हमारे लिए यही संताल हूल दिवस और उस जनक्रांति का संदेश है।
हूल दिवस जोहार! सिद्धो-कान्हू अमर रहें!