विगत 20 वर्षों से हम लगातार यह देखते रहे हैं कि समय समय पर नरेंद्र मोदी की हत्या करने के उद्देश्य से षड्यंत्र रचे जाने का प्रचार लगातार चलता रहा है। जिसका शिकार कई निर्दोष लोग बनाए जाते रहे हैं ।
जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बनाये गये थे तब गुजरात में भाजपा का जहाज डूबने ही वाला था। उस समय मोदी गुजरात में भाजपा को बचाने के लिए बाकायदा एक योजना को लेकर दिल्ली से वहां गये थे। उनके मुख्यमंत्री बनते ही गोधरा की घटना घटी। जिसे मुसलमानों द्वारा रचा गया षड्यंत्र बताकर गुजरात में उनका नरसंहार किया गया। जिसे मोदी ने क्रिया के खिलाफ प्रतिक्रिया के सिद्धांत के द्वारा जायज ठहराया था। आज तक गोधरा के बाद गुजरात में हुए मुसलमानों के कत्लेआम पर कहीं से किसी तरह का पश्चाताप या चिंता या अफसोस संघ भाजपा और मोदी के द्वारा नहीं व्यक्त किया गया है । बल्कि उसे गुजरात के गौरव की वापसी और हिंदुत्व शौर्य के साथ जोड़ा गया था। उसके बाद अक्षरधाम मंदिर की घटना से लेकर हरेंद्र पांड्या, बिलकिस बानो, सोहराबुद्दीन, तुलसी प्रजापति और न जाने कितनी ऐसी घटनाएं हुईं जिनमें मारे गए लोगों को मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के उद्देश्य से गुजरात गया हुआ बताया गया था। इन काउंटरों की एक लंबी फेहरिस्त है जिसमें मोदी की हत्या करने के उद्देश्य से आए हुए लोग मारे जाते रहे हैं ।
बहुत सारे खोजी पत्रकारों की मेहनत के परिणामस्वरूप तथ्य सामने आ चुके हैं किस तरह से गुजरात में मोदी अमित शाह राज मुठभेड़ और हत्या का राज बन गया था।
2014 में मोदीके भारत के प्रधानमंत्री बनने और दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद इसी थ्योरी को विभिन्न घटनाओं के द्वारा बल दिया जाता रहा है। भीमा कोरेगांव में दलितों द्वारा मनाए जाने वाले विजय के प्रतीक दिवस को संघ के नेताओं के द्वारा हिंसक बनाया गया और दलितों पर हमले किए गए। बाद में इसी घटना को केंद्र कर एक षड्यंत्रकारी स्क्रिप्ट तैयार की गई ।जिसमें भारत के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों के प्रगतिशील बुद्धिजीवियों दलित और सामाजिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को प्रधानमंत्री की हत्या के षड्यंत्र में फंसाकर जेलों में डाल दिया गया है।
मोदी के हत्या के षड्यंत्र की लंबी लंबी कहानियां हम समय -समय पर सुनते रहे हैं। जिसमें अल्पसंख्यक नौजवानों से लेकर प्रगतिशील बुद्धिजीवियों को जेलों में डाल कर प्रताड़ित किया गया और उनके जीवन को बर्बाद किया गया है। रोना विलसन ,फादर स्टेन स्वामी ,सुधा भारद्वाज आनंद तेलतुम्बडे,सहित सोलह नाम चीन राजनीतिक बौद्धिक हस्तियां जेलों में सड़ रही हैं ।वे सभी प्रधानमंत्री मोदी की हत्या के षड्यंत्र के स्क्रिप्ट के अधीन मुजरिम बनाए गए हैं। लगता है किसान आंदोलन के नेताओं और पंजाब के बौद्धिक लोगों के खिलाफ यही योजना फिर से अमल में लाई जाने वाली है।
भाजपा सरकार के 7 साल के कार्यकाल को आप देखेंगे तो कदम कदम पर षड्यंत्र मूलक संदिग्ध घटनाओं को होते हुए आप आ सकते हैं। अमित शाह को दोषमुक्त करने के क्रम में जस्टिस लोया की मौत ,गोपीनाथ मुंडे का दुर्घटना में मरना, पुलवामा में 44 सीआरपीएफ के जवानों की मौत आदि घटनाएं लगातार एक ही तरह से क्रमबद्ध चलती रही हैं। पहले देश के खिलाफ और फिर हिंदुओं के खिलाफ चलने वाले निरंतर षड्यंत्र का नैरेटिव रचा गया। गद्दारों और देशभक्तों की विभाजन रेखा तैयार की गई। जनता के दिलों दिमाग में आंतरिक शत्रुओं और अदृश्य संदिग्ध दुश्मनों की एक अदृश्य छवि गढ़ी गई।
स्थाई डर का भाव खासतौर से हिंदू समाज में पैदा करने की कोशिश हुई। अंत में इसे मोदी अपरिहार्य के स्तर पर ले जाया गया और मोदी बिना भारत और हिंदू दोनों सुरक्षित नहीं रह सकते। इस तरह की एक राजनीतिक अपरिहार्यता निर्मित कर दी गई है। जिसकी आड़ में हिंदुत्व कारपोरेट गंठजोड़ के सारे पाप छुपा दिये गये। मोदी राज में राष्ट्र की अखंडता एकता और राष्ट्रीय हित के नाम पर यह सब चल रहा है। यह अजीब विडंबना है की सबसे मजबूत हाथों में सुरक्षित भारत आज सबसे ज्यादा असुरक्षित बताया जा रहा है।अब खेल के आखिरी दौर में मोदी के जीवन की सुरक्षा का सवाल किसान आंदोलन की विजय के बाद राष्ट्र के एजेंडे पर ला दिया गया है।
कृषि कानून आने के बाद लगभग 16 /17 महीने तक चला किसान आंदोलन मोदी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया था। दिल्ली को घेरे जिंदगी को दांव पर लगाए हुए किसान दिल्ली के इर्द-गिर्द डटे रहे। अंत में मोदी को अचानक प्रकट होकर तीन कृषि कानूनों को वापस लेना पड़ा। हालांकि उस समय भी विश्लेषकों का यह विचार था कि भाजपा सरकार कुछ समय पाने के लिए एक कदम पीछे हटी है। जिसे बाद में कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने स्वयं अपने मुखारविंद से प्रकट कर दिया था कि हम सिर्फ एक कदम पीछे हटे हैं। समय आने पर हम दो कदम आगे बढ़ेंगे। अब दो कदम आगे बढ़ते हुए मोदी ने स्वयं पंजाब सरकार और किसानों पर अपनी जान के खतरे का आरोप मढ़ दिया है।जो सर्वथा एक नए तरह की चुनौती है जिसे समझने की जरूरत है।
संघ और भाजपा सरकार की कार्यशैली के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु है। एक झूठ गढ़ो, फिर उसे हजार मुंहों से एक ही तरह से प्रचारित करो ।प्रचार के द्वारा विरोधियों को संदिग्ध बनाओ। उनकी साख और छवि को खराब करो
फिर कुछ अपने लोगों को उकसा कर आक्रोश पैदा करो। संभव हो तो टकराव तक ले जाओ। मौका मिलते ही लक्ष्य पर हमला करने की तरफ बढ़ो।
अगर सत्ता की ताकत हो तो राज्य मशीनरी का नग्न दुरुपयोग विरोधियों के खिलाफ हमले के लिए करो। मीडिया का प्रयोग कर एक संदिग्ध वातावरण बनाओ और अपने को पीड़ित की तरह पेश करो। फिर इसके आड़ में विरोधियों को प्रताड़ित करो। उन्हें षड्यंत्र रच कर जेलों में डाल दो यानी अपने विरोधी को समूल नष्ट करने की तरफ बढ़ो।
गांधीजी की हत्या के पहले इसी तरह का लंबा अभियान चलाया गया था और आज भी उनकी हत्या को जायज ठहराना जारी है।संघ और भाजपा सरकार की कार्यशैली का मूल अंतर्वस्तु यही है।
किसान आंदोलन और पंजाब
पिछले दिनों जिस ऐतिहासिक किसान आंदोलन के सामने मोदी को एक कदम पीछे हटना पड़ा उसका केंद्र पंजाब था। सिख धर्म की आंतरिक विशेषता और पंजाब के लोगों के साहसिक जीवन व्यवहार की विशिष्टतायें अगर किसान आंदोलन के साथ न जुड़ी रही होतीं तो शायद किसान आंदोलन सफल न हो पाता। वैसे पूरा पंजाब और हरियाणा ही किसान आंदोलन में तन मन धन से शामिल था । लेकिन पंजाब के अन्दर आंदोलन का गुरुत्व केंद्र मालवा का इलाका कहा जा सकता है। मालवा क्षेत्र पंजाब के फिरोजपुर बटिंडा गुरदासपुर संगरूर मानसा बरनाला पटियाला सहित राजस्थान के 4/5 जिले और हरियाणा के 3/4 जिलों को मिलाकर के बनता है ।यह इलाका किसान आंदोलनों का शक्ति केंद्र हर बदलते दौर में रहा है। किसान और कृषि पर कारपोरेट हमले के इस नए दौर में भी इस क्षेत्र ने अपनी ऐतिहासिक भूमिका को बनाए रखा और उसे आज की जरूरत के हिसाब से उन्नत किया है।यहां के किसानों के आंदोलन की ऊर्जा के प्रभाव क्षेत्र में राजस्थान हरियाणा पंजाब और अंततोगत्वा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल तक आ गया था। यहीं से मोदी सरकार के लिए यह क्षेत्र कुंठा और चुनौती का सवाल बन गया।
इस लिए मालवा का क्षेत्र संघ और मोदी के निशाने पर निश्चय ही आया होगा। कानून वापसी के बाद किसानों की घर वापसी हुई। आंदोलन के थोड़ा धीमा होने के बाद ठंडे दिमाग से बदला लेने और अपने कारपोरेट मित्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए आंदोलन के केंद्र पर हमले के लिए योजनाबद्ध ढंग से मोदी ने कमान अपने हाथ में ले ली है। यह हर समय याद रखना चाहिए कि संघ नीति मोदी सरकार की खासियत है कि वे अपने से असहमत और भिन्न विचार वाले विरोधियों को कभी माफ नहीं करते और उनको रास्ते से हटाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
सत्ता में रहने के चलते मोदी सरकार को अपने प्रशासनिक मशीनरी से इस बात की जानकारी अवश्य रही होगी कि किसान आंदोलन की मूल संचालक शक्ति मालवा क्षेत्र के क्रांतिकारी वामपंथी किसान यूनियन हैं। जिनका समर्पण प्रतिबद्धता और जनता के बीच में पकड़ इतनी गहरी थी इस आंदोलन ने सभी तरह की बाधाओं को पार कर लिया। इसलिए संघ भाजपा और उसकी सरकार की मशीनरी के निशाने पर मालवा का ही क्षेत्र प्राथमिकता में था।
दो वर्ष के लंबे अंतराल के बाद चुनाव के पूर्व बेला पर मोदी जी को पंजाब के विकास की चिंता हुई और उन्होंने योजना बना कर भारी-भरकम पैकेज लेकर मालवा के सबसे संवेदनशील क्षेत्र फिरोजपुर जाने का फैसला किया। प्रधानमंत्री जी द्वारा विकास की सौगात के साथ 5 तारीख को फिरोजपुर पहुंचने और रैली करने का ऐलान किया गया। संपूर्ण घटनाक्रमों के विकास को देखते हुए यह दिखता है कि फिरोजपुर को चुनने का मकसद साफ था। प्रधानमंत्री जी को पता है तीन कृषि कानूनों के वापसी के अलावा सरकार ने जो लिखित फैसला किया है उसमें से अभी किसी पर भी अमल नहीं हो सका है।खासतौर से एमएसपी के लिए कमेटी बनाया जाना आंदोलन के मुकदमों को वापस लेनाऔर लखीमपुर में किसानों की हत्या के लिए संदिग्ध मंत्री के इस्तीफे की मांग किसानों के एजेंडे पर अभी भी बनी हुई थी।
किसान संगठनों को जब यह जानकारी मिली कि प्रधानमंत्री जी फिरोजपुर सौगात लेकर आ रहे हैं तो उन्होंने अपने लम्बित मांग को लेकर 2 तारीख को गांव पंचायत स्तर पर और 5 तारीख को जिला मुख्यालयों पर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया। इसकी सूचना प्रधानमंत्री को एजेंसियों द्वारा अवश्य दी गई होगी। स्वयं पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी यह सुझाव सरकार को भेज चुके थे कि अभी उचित समय नहीं है कि प्रधानमंत्री जी पंजाब आए और वहां कोई रैली या विकास योजनाओं का उद्घाटन करें।वे परिस्थितियां सामान्य होने तक न आए तो अच्छा रहेगा। लेकिन मोदी जी के वैचारिक और राजनीतिक प्राथमिकताओं को जो लोग समझते हैं वह इस बात को समझ सकते हैं कि उन्होंने इसी समय पंजाब जाने का फैसला क्यों किया।
बाकी सभी सवाल मौसम कैसा था। प्रधानमंत्री को पूर्व इनपुट दी गई थी कि नहीं, हेलीकॉप्टर छोड़कर सड़क मार्ग से क्यों गए। एसपीजी ने अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाई ।आईबी और सीबीआई क्या कर रही थी ।पंजाब सरकार उसकी पुलिस और पंजाब के पुलिस महानिदेशक क्या कर रहे थे। ये सभी सवाल और शंकाएं बेमानी हैं। सब कुछ सोची-समझी योजना के तहत किया गया है और उसका राजनीतिक मकसद अब स्पष्ट हो चुका है।
प्रधानमंत्री सड़क मार्ग से 100किलोमीटर, से ज्यादा यात्रा कर हुसेनीवाला से 15 किलोमीटर पहले फ्लाईओवर पर पहुंचे।प्राप्त सूचनाओं के अनुसार वहां भाजपा के 15से20 लोग झंडा के साथ नरेंद्र मोदी जिंदाबाद का नारा लगा रहे थे ।उस जगह 10-15 मिनट रुकने के बाद वापस मोदी जी भटिंडा एयरपोर्ट लौट गए। भटिंडा पहुंचते ही उन्होंने अपनी योजना का खुलासा यह कह कर के कर दिया कि अपने मुख्यमंत्री से धन्यवाद कहना कि मैं जिन्दा वापस भटिंडा लौट गया हूं। यहीं रस रोमांचकारी कहानी का सार छिपा हुआ है।
मोदी का यह कहना कि भर था कि संघ के लाखों मुंह और पालतू मीडिया एक साथ चिल्ला उठे कि मोदी जी के जान का खतरा था ।पंजाब सरकार ने जानबूझकर उनकी सुरक्षा के लिए उचित प्रबंध नहीं किया। -सुरक्षा में चूक – एक नया जुमला चारों तरफ हवा में तैरने लगा।षड्यंत्र। मोदी जी को मारने का बहुत गंभीर षड्यंत्र रचा गया था। वह तो मोदी जी हैं को सुरक्षित वापस आ गए।
संस्थाओं की साख दांव पर
यह भारतीय लोकतंत्र के लिए चिन्ता का सबब होना चाहिए की मोदी जी सुरक्षित लौटने का बयान देकर भविष्य के किसी बड़े षड्यंत्र की तरफ इशारा तो नहीं कर रहे हैं। वह स्वयं भारत के सभी संस्थाओं के प्रधान होने की हैसियत से जिम्मेदार संस्थाओं और एजेंसियों को संदिग्ध बना रहे हैं ।भारत का प्रधानमंत्री उच्च स्तरीय सुरक्षा घेरे एसपीजी, आईबी, सीबीआई में रहता है। फिरोजपुर जैसे इलाका तो बीएसएफ के सुरक्षा के दायरे में आता है ।अनजाने में प्रधानमंत्री ने इन सभी संस्थाओं की वैधता पर, उनकी क्षमता पर प्रश्न लगा दिया है। क्या यह उसी तरह की कार्य योजना का अंग तो नहीं है जैसा कि संघ भारत के लोकतंत्र संविधान और आधुनिक भारत के सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं को संदिग्ध बनाने का प्रयास करता हैं। वैसे ही मोदी जी 8 साल के अपने कार्यकाल में सभी संस्थाओं की साख पहले ही धूल में मिल चुके हैं। एक जिम्मेदार प्रधानमंत्री को इस तरह की बात करने से बचना चाहिए था।
भीमा कोरेगांव भाग-2। दूसरी बात क्या प्रधानमंत्री जी भीमा कोरेगांव भाग-2 की शुरुआत करने जा रहे हैं ।उस समय संघ के दो बड़े प्रतिष्ठित नेताओं ने उस षड्यंत्र को रचा था। बाद में महाराष्ट्र की सरकार और एनआईए ने मिलकर इस षड्यंत्र को प्रधानमंत्री के सुरक्षा और जिंदगी से जोड़ दिया ।तब पेशवा साही के पराजय का जश्न मनाते हुए दलितों को षड्यंत्र कारी घोषित किया गया था। शुरुआत से ही आरएसएस का लक्ष्य भारत में पेशवा शाही को वापस लाना रहा है। जो अब बदलकर हिंदुत्व का नया स्वरूप धारण कर चुका है।
अब स्वयं प्रधानमंत्री ने यह काम अपने हाथ में ले लिया है। क्या इसके बाद मालवा के किसान नेताओं और भारत के लोकतांत्रिक समाज के खिलाफ फिर से भीमा कोरेगांव षडयंत्र की तरह ही अगले षड्यंत्र की आधारशिला रख दी गई है ।क्योंकि तुरंत ही स्वयं प्रधानमंत्री का राष्ट्रपति से मिलना घटना क्रम को गंभीर मोड़ दे रहा है। मीडिया सहित भाजपा और संघ के सभी संस्थाओं को एक ही दिशा में प्रचार करने में लगा देना गृह मंत्रालय द्वारा एक जांच कमेटी का गठन करना और भाजपाई एडवोकेट द्वारा सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर करना यह सब बता रहा है कि भीमा कोरेगांव षड्यंत्र दो की स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है ।
आप ध्यान रखें कि मालवा में जो किसान संगठन सक्रिय हैं उसमें अधिकांश वामपंथी प्रगतिशील और जनवादी विचारों के हैं। संघ की संस्थाएं इनको लगातार देशद्रोही टुकड़े टुकड़े गैंग और विदेशी एजेंट कहां करती है। इसलिए किसान आंदोलन के कार्यकर्ताओं नेताओं को तत्काल सावधान हो जाना चाहिए। यह उनके खिलाफ एक बड़े हमले की योजना का हिस्सा हो सकता है । ऐसा लगता है कि फिरोजपुर की रैली उसी उद्देश्य से रखी गई थी। इसलिए आने वाला समय किसान आंदोलनकारियों के लिए कठिन दौर होगा । इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा को नई तैयारी में तत्काल उतरना चाहिए।
सतपाल मलिक जैसे राज्यपाल बड़ी मासूमियत से किसानों का पक्ष लेते हुए सिख समाज को एक बदला लेने वाले समाज के रूप में चित्रित कर रहे हैं। वह मोदी के इसी योजना के तहत बयान देते घूम रहे हैं। जबकि सभी को पता है कि यह सिख किसानों सहित भारत के सभी किसानों का आंदोलन है।न कि सिख धर्मावलंबियों का। आनंदपुर साहिब प्रस्ताव के द्वारा शुरू हुआ आंदोलन जिस तरह कट्टरपंथी धार्मिक समूहों के हाथ में चला गया था किसान आंदोलन ने सचेतन इस दिशा में जाने से अपने को बचाए रखा है ।इसके लिए कई क्रांतिकारी वाम पंथी नेताओं को कट्टरपंथी सिख समूहों और हिंदुत्व की ताकतों का निशाना भी बनना पड़ा था। सभी तरह की राजनीतिक धार्मिक जटिलताओं से किसान आंदोलन ने सचेतन तौर बचकर खुद को धर्म और अस्मिता के दायरे में फंसने से बचाए रखा है।
इसलिए आज किसान मोर्चा और संपूर्ण देश के किसान संगठनों और नेताओं को सचेत होकर पंजाब के किसानों को अलगाव में नहीं जाने देना है। मोदी और संघ द्वारा रचे जा रहे इस षड्यंत्र को नाकाम कर के ही किसान आंदोलन की लंबित मांगों को पूरा किया जा सकता है और कारपोरेट हिंदुत्व गठजोड़ के हमले को शिकस्त दी जा सकती है ।यह समय कठिन है। आने वाले पांच राज्यों के चुनाव में अगर हमने भाजपा को बड़ी शिकायत नहीं दी तो उसके बाद परिस्थितियां जटिल हों सकती है। किसान आंदोलनकारियों पर षड्यंत्र कारी हमले बढ़ सकते हैं। जिससे भारत का लोकतंत्र और भारतीय समाज एक नए जटिलता भरे संघर्ष में फंस जाएगा ।इसलिए इस समय लोकतांत्रिक जन गण की जिम्मेदारी बहुत बढ़ गई है।
मोदी और उनके सरकार द्वारा किसान आंदोलन पर नया हमला कर दिया गया है । इस लिए एसकेएम को हमले का सचेत होकर धैर्य पूर्वक लोकतांत्रिक दायरे में प्रतिरोध और जनांदोलनों को जारी रखना और विकसित करना होगा ।इस बार किसानों की और बड़ी जन गोलबंदी की तरफ जा कर ही शिकस्त दी जा सकती है ।हमें उम्मीद है कि भारत का किसान आंदोलन और संगठन अपने जिम्मेदारी को निश्चित पूरा करेंगे।अभी तक उसने संघ भाजपा और मोदी की हर षड्यंत्रकारी परि योजना को असफल किया है ।भविष्य में भी वह मजदूरों छात्रों नवजवानों कर्मचारियों और उत्पीड़ित जन गण के साथ मिलकर कारपोरेट हिंदुत्व गठजोड़ के नये षड्यंत्र और हमलों को नाकामयाब करने की रणनीति अवश्य विकसित कर लेगा।
(जय प्रकाश नारायण